मणिपुर में सुलगी हिंसा में कई लोगों की जान चली गई है. न्यूज एजेंसी पीटीआई ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया कि मणिपुर अब तक 54 लोगों की जान जा चुकी है. पीटीआई ने बताया कि 54 मृतकों में 16 शव चुराचंदपुर जिला अस्पताल के मुर्दाघर में रखे गए हैं, जबकि 15 शव इम्फाल ईस्ट के जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान में हैं.इसके अलावा इंफाल पश्चिम के लाम्फेल में क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान ने 23 लोगों के मरने की पुष्टि की है. हालात पर काबू पान के लिए सेना और असम राइफल्स के करीब 10,000 सैनिकों को राज्य में तैनात किया गया है.(People died in manipur violence)

आदिवासी एकता मार्च के दौरान सुलग उठा मणिपुर
मैतेई समुदाय की ओर से मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इसमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का मुद्दा उठाया गया था. याचिका में दलील दी गई थी कि 1949 में मणिपुर भारत का हिस्सा बना था. उससे पहले तक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था, लेकिन बाद में उसे एसटी लिस्ट से बाहर कर दिया गया.(People died in manipur violence)
शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी मणिपुर (STDCM) ने हाई कोर्ट में दलील दी कि 29 मई 2013 को केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से मैतेई या मीतेई समुदाय से जुड़ी सामाजिक-आर्थिक जनगणना और एथनोग्राफिक रिपोर्ट्स मांगी थी, लेकिन राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया.
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इसी पर मणिपुर हाई कोर्ट ने 20 अप्रैल को राज्य सरकार को आदेश दिया कि वो चार हफ्तों के अंदर मैतेई समुदाय की ओर से एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करे.
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इसके विरोध में तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला था. इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. इसके बाद हालात इतने बिगड़ गए कि कई जिलों में कर्फ्यू लगाना पड़ा गया. इंटरनेट और ब्रॉडबैंड बैन कर दिया गया. सेना और अर्ध सैनिक बलों की 54 टुकड़ियां तैनात कर दी गईं.