बालको ने भारतीय कला और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं, जिससे देश की सांस्कृतिक विविधता को एक मंच पर लाने का काम हुआ है। कला और साहित्य के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करने का यह मंच भारत के बहुसांस्कृतिक समाज को और भी सशक्त बनाता है।(Chhattisgarh ki kala)
बालको (Balco) ने 1976 में कला और मनोरंजन की दिशा में एक नई शुरुआत की थी। गाला फिल्म फेस्टिवल के तहत 20 लोकप्रिय फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। इसके साथ ही हबीब तनवीर के प्रसिद्ध नाटकों, जैसे “चरणदास चोर” और “गांव का नाम ससुराल, मोर नाम दमाद” का मंचन हुआ, जिससे कला प्रेमियों को अलग अनुभव मिला।(Chhattisgarh ki kala)
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1978 में बालको (Balco) ने कुचिपुड़ी नृत्य कला के लिए आंध्रा मित्र कला मंडली के माध्यम से विशेष प्रदर्शन कराया। इस आयोजन में भारत के प्रसिद्ध नृत्य शैलियों की झलक देखने को मिली, जिसमें भरतनाट्यम, कथककली, और लोकनाट्य शामिल थे। इसी साल केरल समाजम ने भी भारतीय नृत्य और नाट्य प्रस्तुतियों के लिए एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया।
1979 में हिंदी दिवस के मौके पर अभिव्यक्ति साहित्य और नाट्य समिति द्वारा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें कई मशहूर कवियों ने भाग लिया, जिन्होंने हिंदी साहित्य की महत्ता को बढ़ावा दिया। इसके साथ ही, बालको द्वारा 1980 में एक विशेष नृत्य आयोजन में पद्मश्री यामिनी कृष्णामूर्ति ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी।
1982 में बालको ने एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया जिसे आकाशवाणी, रायपुर द्वारा रिकॉर्ड किया गया। इस आयोजन में श्रमिकों और विद्यार्थियों के साथ बालको महिला मंडल के सदस्य भी शामिल हुए। इस आयोजन ने स्थानीय संस्कृति को देशभर में पहचान दिलाई।
1985 में बालको ने मरहूम मोहम्मद रफी की पुण्यतिथि पर ‘याद-ए-रफी’ नामक गज़ल शाम का आयोजन किया। इसी साल, ‘संगीत सरिता’ और सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति के तत्वावधान में कव्वाली और संगीत कार्यक्रम आयोजित हुए, जिसने शहरवासियों का मनोरंजन किया।
1986 में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जन्मशताब्दी के मौके पर एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में देश के प्रसिद्ध हास्य और व्यंग्य कवियों ने भाग लिया, जिससे साहित्य प्रेमियों को उत्कृष्ट कविता सुनने का अवसर मिला।
1987 में बालको को हिंदी में उत्कृष्ट योगदान के लिए इस्पात एवं खान मंत्रालय द्वारा राजभाषा शील्ड से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर धातु उद्योग की समस्याओं और चुनौतियों पर एक सेमिनार का भी आयोजन किया गया, जिसमें विशेषज्ञों ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
1988 में बालको सार्वजनिक दुर्गा पूजा कमेटी द्वारा पंडवानी की प्रसिद्ध लोक गायिका पद्मश्री तीजनबाई का आयोजन किया गया। तीजनबाई की प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, जिससे भारतीय पारंपरिक लोक कला को विशेष समर्थन मिला।
1995 में नेशनल सेफ्टी कौंसिल, मध्य प्रदेश चैप्टर के रजत जयंती समारोह में बालको सांस्कृतिक मंडल ने ‘असुरक्षित का जनाजा’ नामक नाटक प्रस्तुत किया। नाटक की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि इसे अंतर्राष्ट्रीय सेफ्टी कौंसिल में भी प्रस्तुत करने का निर्णय लिया गया।
बालको ने सदैव छत्तीसगढ़ की पारंपरिक कला को बढ़ावा देने का काम किया है। स्थानीय म्यूरल, गोंकरा, भित्ती कला, और कर्मा नृत्य को प्रोत्साहित करने के लिए कंपनी ने विशेष पेंटिंग प्रतियोगिताएं और कला प्रदर्शनियों का आयोजन किया है, जो स्थानीय कला और संस्कृति को नई पहचान देने में सहायक रहे हैं।
बालको ने भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए हैं। कंपनी ने हिंदी दिवस पर काव्य गोष्ठी और मल्हार फोटोग्राफी प्रदर्शनी का आयोजन किया है। इससे न केवल कला को प्रोत्साहन मिला है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का भी काम हुआ है।