शरद पूर्णिमा की रात, पूर्ण चंद्रमा से निकलने वाली किरणों को अमृत तुल्य माने जाने की परंपरा चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से बरसने वाले अमृत का पान करने से विविध रोगों से छुटकारा मिलता है। शरीर स्वस्थ रहता है और ताजगी का अहसास होता है। चंद्रमा की अमृत रूपी किरणों को ग्रहण करने के लिए लोग लालायित रहते हैं। इसके लिए छत, आंगन में खीर का कटोरा रखते हैं, ताकि चंद्रमा की किरणें उस खीर में समाहित हो जाएं।(Shadow of lunar eclipse) खीर का भोग माता लक्ष्मी और अन्य देवों को अर्पित करके उस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। खीर का सेवन करने की इस परंपरा का पालन स्थानीय मंदिरों में सालों से किया जा रहा है, लेकिन इस बार चंद्रग्रहण होने से मंदिरों में शाम को खीर का वितरण नहीं होगा।
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चंद्रग्रहण का साया, रात दो बजे के बाद बांटेंगे खीर
इस बार शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर को है और इसी दिन देर रात चंद्र ग्रहण भी लग रहा है. चूंकि चंद्र ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है इसलिए दोपहर 02.52 के बाद धार्मिक कार्य, खाना बनाने और खाने की मनाही होगी. ऐसे में चंद्र ग्रहण के मोक्ष के बाद खुले आसमान के नीचे आप खीर रख सकते हैं. चंद्र ग्रहण 29 अक्टूबर 2023 को देर रात 02.22 तक रहेगा!(Shadow of lunar eclipse)
शरद पूर्णिमा पर क्यों बनाई जाती है खीर
धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र मंथन से लक्ष्मीजी निकली थी। इस दिन चन्द्रमा 16 कलाओं से युक्त होकर धरती के सबसे नजदीक होता है। चन्द्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इस दिन खीर बनाकर भगवान को अर्पण व चंद्र रोशनी में रातभर रखकर अगले दिन खाने का विधान है। इससे शरीर पूरे वर्ष निरोग व स्वस्थ रहता है व लक्ष्मी की कृपा रहती है।
इस समय रखें चांदनी में खीर
भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा के विद्वानों ने निर्णय दिया कि शनिवार सांय 4.05 से पहले ही खीर बनाकर उसमें गंगाजल व कुश व तुलसीपत्र डालकर चंन्द्रोदय की रोशनी में रखना चाहिए। इससे वह अशुद्ध नहीं होगा व ग्रहण लगने से पूर्व हटा लेना चाहिए। यानि रात को 1.04 बजे से पहले हटा ले। ग्रहण के बाद उसका सेवन कर लें।
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